कोविशील्ड: अभिशाप या वरदान? Covishield Detailed Analysis

कुछ दिन पहले ही कोविड-19 के लिए वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट में माना था कि उसकी वैक्सीन के कुछ दुर्लभ साइड इफेक्ट्स के कारण मौतें हो सकती हैं। इस खबर से दुनिया भर में खलबली और बहस छिड़ गई है। टीवी, अख़बार और सोशल मीडिया सभी एस्ट्राज़ेनेका की कथित लापरवाही पर चर्चा कर रहे हैं।

covishield side effects in hindi


हालाँकि, इससे पहले कि हम उंगलियाँ उठाना और दोष देना शुरू करें, आइए COVID-19 महामारी के शुरुआती दिनों को याद करें जब अस्पताल खचाखच भरे हुए थे, ऑक्सीजन के सिलिंडर के लिए आपाधापी थी और और दवाएँ दुर्लभ थीं।

गरीब मजदूर वर्ग की हालत तो और भी खराब थी। उनकी जेब में पैसे नहीं थे और ना घर में राशन। अस्पतालों में भयंकर मारामारी थी। ईलाज इसलिए भी नहीं मिल पा रहा था क्योकि हॉस्पिटल में बेड भी कम पड़ रहे थे। जब भारी भरकम पैसे खर्च करने के बाद भी इलाज नहीं हो पा रहा था , तो ऐसे में उनका COVID-19 की मार में बिना ईलाज मर जाना कोई अजीब बात नहीं थी। 

उस भयावह माहौल के बीच, लोग अपनी सरकारों की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे थे इस उम्मीद में की शायद सरकार इस वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए सभी उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके कोई दवा या टीका विकसित करेगी। अचानक ही दुनिया की 7 अरब आबादी के जीवन का ज़िम्मा चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े उन 6 करोड़ योद्धाओं के कंधों पर आ गया है, जो 24 घंटे एक ऐसे युद्ध के मैदान में खड़े थे जहां चारों ओर दुश्मन मौजूद था। मगर सिर्फ नज़र नहीं आता था। 

एक चुनौतीपूर्ण माहौल में, एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने मिलकर कोविड-19 वैक्सीन बनाई। इसके विकास के बाद, वैक्सीन को वैक्सजेवरिया और कोविशील्ड नाम से बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए दुनिया भर की अन्य कंपनियों को वितरित किया गया। भारत में, सीरम इंस्टीट्यूट कम समय में उपलब्ध खुराक की संख्या बढ़ाने के लिए वैक्सीन का उत्पादन करने में जुट गया।

आम तौर पर कोई वैक्सीन कैसे बनाई जाती है। वैक्सीन विकसित करना एक लंबी और महंगी प्रक्रिया है, जिसमें 10 साल से अधिक का समय लगता है और कई सौ करोड़ रुपये की लागत आती है। सुरक्षा और प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए इस प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं। प्रारंभ में, कई वर्षों तक प्रयोगशाला अनुसंधान किया जाता है, इसके बाद टीके के प्रभाव को समझने के लिए छोटे जानवरों पर परीक्षण किया जाता है। वैक्सीन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बाद ही इसे क्लिनिकल ट्रायल के तीन चरणों से गुजारा जाता है। पहले चरण में इसका प्रभाव 10-20 व्यक्तियों के समूह पर देखा जाता है और बाद के चरणों में यह संख्या धीरे-धीरे 100-300 और 1000-3000 तक बढ़ जाती है। क्लिनिकल परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद, वैक्सीन को बाजार में उतारने से पहले विभिन्न रिपोर्ट तैयार करने में कुछ और साल लग जाते हैं। यह चरणबद्ध दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि अगले चरण पर धन तब ही खर्च किया जाए जब पिछले चरण सफल रहे। इस तरह संसाधनों की बर्बादी से बचा जाता है।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सरकारों ने कोरोना की वैक्सीन के विकास के दौरान अनुसंधान का खुलकर समर्थन किया और धन के खर्च की सीमा को ताक पर रख दिया। विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों ने शोध के प्रत्येक चरण पर एक साथ काम किया, जिससे खर्च छह गुना तक बढ़ गया। हालाँकि, इससे कोरोना वैक्सीन एक साल के भीतर बाजार में आ गई।

यदि आप अब तक इस लेख का अनुसरण कर रहे हैं, तो आपको एहसास हुआ होगा कि सरकारों और चिकित्सा पेशेवरों को कोविड-19 से निपटने के लिए समाधान विकसित करने में किस भारी दबाव का सामना करना पड़ा था। एक ऐसा कार्य जो उमूमन एक दशक से अधिक का समय लेता है उसे दिन-रात की मेहनत के साथ एक वर्ष के भीतर पूरा किया गया, जिसकी काफी सराहना भी हुई। 

हाल की रिपोर्टों से पता चला है कि दस लाख की आबादी में से 60-70 मौतें थ्रोम्बोसिस या थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के कारण हुई हैं। यह एक ऐसी समस्या है जिसमे रक्त बहुत गाढ़ा हो जाता है।

एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन के साइड इफ़ेक्ट से मौत की सम्भावना को स्वीकारने के साथ एस्ट्राजेनेका ने अपने पक्ष में यह दावा भी किया है कि उसने अपनी वैक्सीन की पैकेजिंग में एक इंसर्ट (इसके साइड इफेक्ट बताने वाला पेपर) शामिल किया था। 

यदि यह सच है तो यहां सरकार की विफलता इस तथ्य में निहित है कि उसने वैक्सीन के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में पारदर्शी तरीके से लोगों तक जानकारी नहीं पहुंचाई और इसके बजाय इसे अनिवार्य बना दिया। लोगों को अपनी मेडिकल हिस्ट्री को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए थी कि उन्हें टीका लेना है या नहीं।

कुछ व्यक्तियों ने कहा है कि वैक्सीन की शीशी पर चेतावनी लिखी हुई थी कि इसे अपनी जिम्मेदारी से लगवाए, लेकिन वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावशीलता की घोषणा करने वाली सरकार इस महत्वपूर्ण जानकारी को बताना कैसे भूल गई?

अब, यह स्पष्ट नहीं है कि स्थिति के लिए कोई सरकार ज़िम्मेदार है या परिस्थितियाँ किसी के नियंत्रण से परे थीं। हम इसका निर्धारण आप पर छोड़ते है। निर्णय लेने में आपकी सहायता के लिए, हमने नीचे कुछ प्रश्न सूचीबद्ध किए हैं। उत्तर आपको यह निर्धारित करने में मदद करेंगे कि क्या एस्ट्राजेनेका या किसी भी देश की सरकार वैक्सीन से संबंधित मौतों के लिए जवाबदेह है:

1. अगर कोविड-19 के समय सरकार या वैज्ञानिकों ने मजबूर होकर दिखाया होता कि 10-11 साल से कम समय में कोई वैक्सीन विकसित नहीं की जा सकती, तब? 

2. सरकार या वैज्ञानिक यही जताते की वे इतने कम समय में कुछ भी करने में असहाय हैं, तब?

2. यदि समय के आभाव में कोई टीका पूरे क्लिनिकल ट्रायल के बिना एक बड़ी आबादी को फायदा दे पाया मगर कुछ की जान गई (कुछ माने 10 लाख में से 60-70) इस पर आप क्या कहेंगे ?

(हम किसी भी मौत को सहजता से नहीं ले रहे। हमारा भी यही मानना है की जीवन सदैव अनमोल है चाहे वह एक का हो या अनेक का)

Edited by:-

Dr. Dolly


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